जिला ब्यूरो चीफ नीलेश विश्वकर्मा 24 क्राइम न्यूज़ दमोह
पथरिया कभी घर के आंगन में गौरेया का कोलाहल खुशियों और उम्मीदों का पर्याय होता था। लेकिन कंकरीट के जंगल में तब्दील होती शहर और शहरी करण ने पक्षियों के लिए जगह नहीं छोड़ी। यही कारण है कि अब गौरैया कम ही नजर आती है।
गौरैया को आसरा देने की मुहिम में जुटे हैं ग्रामीण क्षेत्रों के कई युवा,गौरैया की चहचहाहट से हमारे आंगन की उदासी कम होती है। सुबह आंख खुलने पर कानों में सुनाई पड़ती गौरैया की चहक। बरसात में घर के आंगन में एकत्र पानी में किलोल करता गौरैया का झुंड। रसोई की खिड़की पर लटकते हुए अंदर की तरफ झांकती गौरैया। ये सब मन को प्रफुल्लित कर देते हैं। हमारे आसपास ये माहौल बना रहे, इसके लिए बहुत तामझाम नहीं बल्कि नन्ही गौरैया की तरह नन्हे प्रयासों की जरूरत है। ग्रामीण क्षेत्रों में कई युवा ऐसे हैं, जिनके प्रयास गौरैया को संरक्षित करने के साथ समाज के लिए मिसाल का काम कर रहे हैं। ऐसा ही एक नाम नेहरू युवा नव जागृति नव युवक मंडल बांसा कलां, तहसील पथरिया के अध्यक्ष घनश्याम पटेल द्वारा ग्राम बांसा कलां में पक्षीयों के लिए एक छोटा सा प्रयास और जन मानस से सोशल मीडिया के माध्यम से लोगों से अपील कर रहे हैं। साथ ही वह कहते हैं गौरैया के संरक्षण के लिए हम सभी अपने स्तर से छोटे-छोटे ऐसे कार्य गौरैया के संरक्षण के लिए हर घर में प्रयास ज़रूर होने चाहिये।
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